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Madhubani Painting मधुबनी चित्रकला


 मधुबनी चित्रकला को मिथला चित्रकला भी कहते है  । बिहार प्रदेश की कला परंपरा में मधुबनी चित्रकला का बड़ा योगदान है  । मधुबनी चित्रकला बिहार के दरभंगा , मधुबनी  , पुर्णिया , सहरसा , मुजफ्फरनगर  के अलावा नेपाल की लोककला है  । यह कला मुख्यतः महिलाओ द्वारा ही शुरू किया गया था परन्तु वर्तमान समय में इस लोककला को पुरुषों द्वारा भी बनाया जा रहा है  ।अपने  प्रारंभिक समय में यह कला घरेलू कला के रूप में जानी जाती थी परन्तु हालही के वर्षों में मधुबनी कला को अंतराष्ट्रीय स्टार की पहचान मिल चुकी है  । 

यह कला किसी त्यौहार , किसी के जन्म तथा विवाह आदि उत्सवों और अनुष्ठानों पर बनाया जाता है ।मधुबानी चित्रकला में प्रयोग होने वाले  रंग आमतौर पर पौधों और अन्य प्राकृतिक खनिज पदार्थों से प्राप्त किया जाता है  जैसे -लैम्प ब्लैक से कला रंग , गेरू से भूरा रंग , हल्दी से पीला और बाबुल की छाल से लाल रंग आदि प्राप्त किया जाता है । इन रंगों में बंधक के रूप में बाबुल के पेड़ से निकला  गोंद और दूध का प्रयोग किया जाता है ।मधुबनी चित्रकला उन कलाओं में से है जिनमे खिलखिलाते चटक रंगों का प्रयोग किया जाता है । इन चित्रों को बनाने के लिए माचिस की तीली और बाँस की डंडी से बने बने कलम का प्रयोग किया जाता है । इन चित्रों को पारम्परिक रूप से दीवारों अथवा भूमि पर बनाया जाता है । मधुबनी को शुरुआत में अनेक विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा बनाया जाता था । जिनमे पाँच अलग - अलग शैलियाँ है । जिनमे - तांत्रिक , कोहबर , भरनी , कचनी और गोदना है । लेकिन आज इन सभी शैलियों को समकालीन कलाकारों द्वारा बनाया जाता है । 

मधुबनी चित्रकला के विषय - रामायण , कृष्ण - राधा , लक्ष्मी , शिवदुर्गा और सरस्वती जैसे हिन्दू देवी देवताओं के चित्र बनाए जाते है । इसके आलावा सूर्य , चन्द्रमा , तुलसी , जनजीवन से सम्बंधित चित्र पशु - पक्षी आदि को चित्रित किया जाता है । 

मधुबनी चित्रों की विशेषता यह है की इसमें ज्यामितीय आकारों का प्रयोग किया जाता है । इन चित्रों में दोहरी रेखाओं का प्रयोग किया जाता है । इन चित्रों में किसी भी स्थान को खली नहीं छोड़ा जाता है उसे फूल - पत्तियों और बेल बूटों द्वारा भरदिया जाता है । वर्तमान समय में मधुबनी कला  का स्वरूप काफी बदल गया है परंपरागत रूप से जहाँ धरातल के रूप में धरती और भित्ति का प्रयोग किया जाता था वहीं समकालीन कलाकारों द्वारा आज कैनवास और हैंडमेड शीट का प्रयोग किया जाता है जहाँ पहले चित्र बनाने के लिए  माचिस की तीली और लकड़ी की डंडी का प्रयोग किया जाता था वही आज विभिन्न प्रकार के ब्रशों का प्रयोग किया जाता है । मधुबनी चित्तकला फैशन की दुनिया से भी अछूती नहीं रही मधुबनी  चित्रकला के प्रिंट आज हम साड़ियों और सूटों पर देख सकते है । समकालीन कलाकारों ने इस धरोहर को अपनी चित्रकला की प्रदर्शनियों द्वारा विदेशों में इस कला की सही पहचान दिलाई है । जापान के ' टोकामाशी ' में खास मधुबनी चित्रकला के लिए एक संग्रहालय बनाया गया है जिसमे 15000 तक की संख्या में मधुबनी पेंटिंग रखी गई है 


मधुबनी रेलवे स्टेशन को पूरी तरह से मधुबनी चित्रकला से सुसज्जित कर दिया गया है 
 । इसको बनाने में लगभग 150 से अधिक कलाकारों ने अपने अथक प्रयासों द्वारा दिन रात मेहनत करके काम किया  । इन कलाकारों ने इसे बनाने के लिए कोई भी पैसे नहीं  लिया एक तरीके से उन कलाकारों ने श्रमदान दिया  । इसके आलावा दरभंगा रेलवे स्टेशन और सहरसा रेलवे स्टेशन को भी मिथला चित्रकला द्वारा सुसज्जित किया गया है  । स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के डेबिड कार्ड पर भी मधुबनी चित्रकला की छाप  देखने को मिलती है  । आज स्टेशनों के आलावा ट्रेनों के डिब्बों को भी मधुबनी चित्रकला से सजाया जा रहा है जिसमे संपर्क क्रांति जो की दरभंगा से दिल्ली की ओर जाती है , महानंदा ट्रैन पर भी मधुबनी चित्रकला किया गया है और पटना राजधानी पर भी इन चित्रों को बनाया गया है  । कलाकारों की यह पहल मधुबनी चित्रकला की विरासत को जन - जन तक पहुँचाने में बहुत अहम किरदार अदा  कर रही है   

 मधुबनी चित्रकला का इतिहास 

कहते है मधुबनी चित्रकला  शुरुआत रामायण काल में हुई थी । उस समय मिथला के राजा जनक थे ।राम के धनुष तोड़ने के राजा जनक की बेटी सीता की शादी श्री राम से तय हुई थी राम के पिता  अयोध्या के राजा थे । मिथला प्रदेश में अयोध्या से बारात आने वाली थी । राजा जनक ने सोंचा की सीता की शादी ऐसी होनी चाहिए लोग याद करे । राजा जनक ने अपने प्रदेश की जनता को आदेश दिया की सभी लोग अपने आँगन और  घरो में ऐसी सजावट करे जिसमे मिथला प्रदेश की झलक हो । राजा जनक की आज्ञा मानकर मिथलावासियो ने अपने घरो और आँगनों की दीवारों और भूमि पर खूबसूरत रंगबिरंगी मधुबनी चित्रकला का निर्माण किया । तभी से मधुबनी चित्रकला बनाने की शुरुआत हुई । जो आज भी कायम है । 

मधुबनी चित्रकला दुनियाँ के सामने कब आई ?

वैसे मधुबनी कला को आज  विश्व जानता हैं परन्तु यह बहुत काम ही लोग जानते होंगे की कैसे मधुबनी कला पूरी दुनिया के सामने आई । सन 1934 के पहले यह सिर्फ गाँव की एक लोककला ही थी । 1934  में मिथलांचल में एक बड़ा भूकंप जिससे वहाँ काफी नुक्सान हुआ वहाँ के घरो और दीवारों के छत पूरी तरह से नष्ट हो गए थे  । जब मधुबनी के ब्रिटिश ऑफिसर विलियम आर्चर ने वहाँ पर भूकंप से हुए  नुक्सान का जायज़ा लिया  विलियम आर्चर ने वहाँ की टूटी दिवारों पर बने चित्रों को देखा जो उनके लिए बहुत ही नई और अनोखी थी । उन्हों ने बताया की भूकंप के मलबे की दीवारों पर जो चित्रकारी है वो जॉन मिरो और पिकासो के चित्रों जैसी थी फिर उन्होंने उन चित्रों की ब्लैक एंड वाइट तस्वीरें खींची जो मधुबनी कला की अबतक की सबसे पुरानी तस्वीर मानी जाती है । विलियम आर्चर ने सन 1949 में ' मार्ग '  नाम की एक पत्रिका में मधुबनी चित्रकला के बारे में बताया था । इसके बाद पूरी दुनिया को मधुबनी चित्रकला की खूबसूरती का ज्ञान हुआ  


मधुबनी चित्रकला के कुछ प्रमुख कलाकर

गंगा देवी - गंगा देवी मधुबनी चित्र कला की जानी  मानी चित्रकार है । इन्होने भारत के अलावा विदेशों में भी इस कला को लोकप्रिय बनाया है । गंगा देवी का जन्म बिहार के मिथला क्षेत्र में हुआ था वह कास्य समुदाय में पैदा हुई थी । मधुबनी कला का ज्ञान उन्हें बचपन से ही हो गया था उन्होंने बचपन से ही अपनी माँ और दादी को मधुबनी चित्रकला को उत्सवों में बनाते हुए देखा था तभी से इन्हे इस कला को बनाने की प्रेरणा जागृत हुई । इन्होने कचनी शैली में अपने चित्रों को बनाया । इन्होने मधुबनी चित्रकला को लोकप्रिय बनाने के लिए विभिन्न देशों की यात्राएँ भी की । इन्होंने फेस्टिवल ऑफ़  इंडिया ( USA ) में भी भाग लिया । भारत सरकार द्वारा  इन्हे शिल्प के लिए राष्ट्रिय पुरस्कार और भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया । 

 महा सुंदरी देवी - इनका जन्म बिहार के मधुबनी में हुआ था । यह भी एक मधुबनी कला की प्रसिद्ध कलाकार है । इन्होने मधुबनी  पेंटिंग ही नहीं बल्कि इस कला के विकास के लिए सरकारी सम्मिति बनाकर लोगो को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । 1982 में इन्हे राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रिय पुरस्कार मिला । 1 995 में मध्यप्रदेश सरकार ने इन्हे तुलसी सम्मान से सम्मानित किया । 2011 में इन्हे भारत सरकार द्वारा पद्म श्री सम्मान प्रदान किया गया । 2013 में महासुंदरी देवी जी की मृत्यु हो गई । 

भारतीय दयाल - भारतीय दयाल का जन्म बिहार के समस्तीपुर में हुआ था इन्होने भी अपनी माँ और दादी से मधुबनी चित्रकला सीखी थी । भारतीय दयाल ने इस कला को विश्व मंच पर लेजाने का प्रयास किया । 2016 में इनके चित्रों को 'बेल्जियम ' के कला संग्रहालय ' मोसा ' में प्रदर्शित किया गया था । 1995 में फ्रांस के एक चैनल  पर प्रसारित एक वृत्त चित्र में उनकी मधुबनी पेंटिंग प्रदर्शित की । 2006 में भारतीय दयाल को राष्ट्रिय पुरस्कार मिला । उन्हें आई.फैक्स द्वारा भी सम्मानित किया गया 



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