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Roads of plastic प्लास्टिक से बनी सड़कें


 प्लास्टिक यह वह चीज़ है जिसका प्रयोग हम सभी रोज़मर्रा के कामों में करते है  चाहे हम खाने का सामान खरीदे या फिर कोई इलेक्ट्रानिक उपकरण हर जगह प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है । इसके अधिक प्रयोग के कारण इसमें मौजूद रसायन और तत्व मिट्टि , हवा और जल में मिलजाने के कारण वातावरण प्रदूषित हो रहा है । जिससे कई बीमारियाँ हो रही है जमीन पर रहने वाले जीव हों या फिर पानी में रहने वाले यह पूरे जीवमंडल के लिए खतरा बन गया है ।  


इसी समस्या से निदान हेतु एक ऐसे सक्श है जिन्होने फेंकी हुई प्लास्टिक से सड़क बनाने का निर्माण किया । इनका नाम राजगोपालन वासुदेवन है ये तमिळनाडू  के मदुरई में रहते है । इन्होंने कचरे में फेंकी जाने वाली प्लास्टिक से सड़क बनाया वो भी बिना प्रदूषण फैलाए । 

इसकी शुरुआत 2001 में त्यागराजन विश्वविद्यालय के कैमिस्ट्री डिपार्टमेन्ट के प्रोफेसर डॉक्टर राजगोपालन ने अपनी लैब में यह प्रयोग किया जिसमे उन्होंने पाया की बिटुमिन ( Bitumen ) और प्लास्टिक का मेल सड़क को ज़्यादा मजबूती दे सकता है । सड़क पर डाला जाने वाला गाढ़ा तारकोल को बिटुमिन या डामर कहते है । 
प्रोफ़ेसर राजगोपालन वासुदेवन 

आमतौर पर  एक सिंगल लेन की एक किलोमीटर रोड बनाने के लिए 10 टन बिटुमिन की आवश्यकता पड़ती है । पर प्रोफेसर राजगोपालन  जी के प्रयोगो से बनाई जाने वाली सड़कों में 9 टन बिटुमिन में 1 टन प्लास्टिक को मिलाया जाता है । इन्होने बताया की 1 टन प्लास्टिक का मतलब है 1 लाख पॉलीथिन उन्होंने कहा की इस प्रयोग से जो प्लास्टिक को ख़त्म होने में सैकड़ों वर्षो का समय लगता है अगर हम उससे सड़क का निर्माण करे तो उससे पर्यावरण का काफी फायदा होगा । 

उन्होंने बताया की प्लास्टिक से सड़क बनाना बहुत आसान है । सबसे पहले सड़क बनाने के लिए प्रयोग होने वाले पत्थरों को 170 डिग्री तापमान पर गरम करना होगा फिर वेस्ट प्लास्टिक की कतरन को छोटे - छोटे टुकड़ो में कतरकर इसमें मिला लेते है और प्लास्टिक 30 सेकन्ड से 1 मिनट के भीतर पिघल कर सड़क के गरम पत्थरों से मिल जाता है । फिर इसमें 160 डिग्री के तापमान पर बिटुमिन को इसमें मिला दिया जाता है और फिर वह मिश्रण तैयार हो जाता है जिससे प्लास्टिक की सड़क बनाई जाती है । 


प्लास्टिक  सड़क के बहुत से फ़ायदे है । सबसे पहले यह सड़कें  भारी वाहनों को आसानी झेल सकते है । इससे बनने वाली सड़कों में पानी का रिसाव नहीं होता जिससे बारिश में सड़क का नुक्सान होता था ।इन सड़कों को दस साल तक मिनटेनेंस की आवश्यकता नहीं पड़ती और सबसे मुख्य बात यह है की प्लास्टिक को डिस्पोज़ करने का यह बहुत बैहतरीन तरीका है । 


राजगोपालन ने अपनी इस खोज को अपनी यूनिवर्सिटी के नाम से पेटेन्ट भी करवाया है और उन्होंने अपनी इस खोज  को जान कल्याण के नाते भारत सरकार को मुफ्त में ही दे दिया । 2002 में उन्होंने इससे सड़क बनाना शुरू किया और भारत में तमिळनाडू पहला ऐसा शहर बना जहाँ  प्लास्टिक रोड का निर्माण हुआ उसके बाद केरल , कर्नाटका , आन्धप्रदेश और भारत के कई राज्यों में प्लास्टिक से बानी सड़कों का निर्माण शुरू हो गया । 

राजगोपाला जी और भारत सरकार के प्रयासों द्वारा 2015 तक तकरीबन एक लाख किलोमीटर तक की सड़क इसी तकनीक से बानी । प्लास्टिक से बानी सड़क एक ऐसा विकल्प है जो हमारी धरती के भविष्य को बदल रहा है और यह एक ऐसी पहल है जो प्लास्टिक डिस्पोज़ल की समस्या को ख़त्म कर देगी । 75 साल के राजगोपालन दुनिया के ऐसे पहले व्यक्ति है जिन्होंने इस तकनीक का विकास किया । और  2018 में भारतसरकार ने इनकी इस असाधारण खोज के लिए  इन्हें पद्म श्रीं से सम्मानित किया 

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