भले ही ओरिगामी जापान की परम्परा और संस्कृति का हिस्सा हैं । फिरभी किसी न किसी रूप से आज ये कला पुरे विश्व में लोकप्रिय हो गई है । बच्चे इसे बनाते समय काफी उत्साहित महसूस करते है । यह बड़े ही कमाल की बात है की कैसे एक चौकोर कागज को कुछ सामान्य से तरीके से मोड़कर किसी दूसरी वस्तु का प्रतिरूप बनाया जा सकता है जैसे - मेढक , पक्षी , कमल का फूल और तितली आदि ।
ओरिगामी का इतिहास
ओरिगामी का इतिहास हज़ारो साल पुराना है ।इसे हम जापानी संस्कृति के आलावा यूरोपीय संस्कृति में भी देख सकते है । यूरोप में 17 -18 वीं शताब्दी तक नैपकिन फोल्डिंग का भी काफी चलन रहा है । कागज़ के नैपकिन को काफी अच्छी तरह से फोल्ड करके खाने की टेबल पर रखा जाता था और यह समाज के ऊँचे रुतबे को भी दर्शाता था । कागज़ का आविष्कार 105 ई ० में चीन में हुआ था । वास्तव में कागज़ को मोड़कर बनाने की शुरुआत चीन में हुई थी चीन में कागज को मोड़कर उसे किसीकी मृत्यु होने पर जलाया जाता था । कागज़ 6 वीं शताब्दी में एक बुद्धिस्ट मौन्क के जरिये पहली बार जापान में लाया गया था और पहला ओरिगामी भी उसी बुद्धिस्ट के जरिये बनाई गई । उन्होंने धार्मिक समारोह और महत्वपूर्ण प्रतीकों के रूप में इसका प्रयोग किया फिर धीरे -धीरे ओरिगामी जापानी लोगो के बीच में लोकप्रिय हो गई । उन्हें कागज़ को मोड़कर एक कलाकृति का निर्माण करने का यह तरीका काफी पसंद आया और फिर धीरे - धीरे जापानी लोगों ने चीन से कागज़ का आयात करना शुरू कर दिया ।
1603 - 1868 के मध्य '' Edo '' एडो काल में कागज़ को मोड़कर चीज़े बनाना जापानी समारोहों और परम्परा का एक हिस्सा बन गया । ओरिगामी को जापान के हर वर्ग के लोग नहीं बना सकते थे क्योँकि उस समय कागज़ अविश्वसनीय रूप से बहुत महंगा होता था सिर्फ अमीर और धार्मिक लोग ही कागज़ खरीद सकते थे कागज़ से चीज़े बनाना धीरे - धीरे अमीरों का शौक बन गया और इसको बनाना कुशलता का प्रतीक समझा जाने लगा । उच्च वर्ग की महिलायें शौकिया तौरपर इसे बनाती थी । धीरे - धीरे जैसे - जैसे कागज़ के दाम घटने लगे आमलोग भी इसे बनाने लगे । जापानी लोग आमतौर पर जापानी सारस की ओरिगामी बहुत बनाते है । जापानी लोग सारस पक्षी को बहुत पवित्र मानते है और उसे खुशहाली और लम्बी ज़िंदगी का प्रतीक भी मानते है । जापानी लोग मानते है की अगर कोई एक हज़ार सारस की ओरागामी बनता है तो उसकी सभी इच्छाएँ पूरी हो जाती है वही कुछ लोग मानते की इसको बनाने से अच्छा भाग्य बनता है और इससे कई बीमारियाँ भी ठीक हो जाती है अगर किसी का ध्यान भटक रहा हो और उसे कोई गलत आदत हो वह इसको बनाने से निजाद पालेता है । इसपर एक ' Sembazuru Orikata ' नाम की 1000 सारस की ओरिगामी बनाने की दन्तकथा भी है जिसे ''Aki Sato Rito '' ने लिखी जो 1797 में सामने आई ।' सेमबाज़ुरू ' का अर्थ है 1000 सारस और ' ओरीकाता ' का अर्थ है ओरिगामी । एक हज़ार सारस बनाने का चलन और अधिक बढ़ गया जब '' साडाको सासाकि '' नाम की लड़की ने अपने जीवन के अंतिम पालो में एक हज़ार सारस बनाने की ठानी । साडाको जब दो वर्ष की थी तब दूसरे विश्व युद्ध के चलते जापान के ' हिरोशिमा ' और ' नागासाकी ' पर अमेरिका ने परमाणु बम छोड़ा जिसके प्रभाव से साडाको को ब्लड कैंसर हो गया था । 12 वर्ष की उम्र में साडाको का अधिकांश समय हॉस्पिटल के बिस्तर पर हि व्यतीत होता था और फिर साडाको ने एक हज़ार सारस बनाने का लक्ष्य रखा जो सेमबाज़ुरू लेजेंड से प्रभावित थी ।
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साडाको सासाकि की स्मृति मूर्ति |
जीवन के अंतिम काल तक वो सिर्फ 644 ओरिगामी ही बना पाई क्योंकि वो अपनी बिमारी के कारण बहुत कमज़ोर हो गई और 20 अक्टूबर 1955 को उसकी मृत्यु हो गई । उसके अंतिम लक्ष्य को पूरा करने के लिए बाकी के बचे 356 ओरिगामी को उसके साथ पढ़ने वाले बच्चो ने पूरा किया । साडाको की भावुक कहानी उसके माता - पिता , भाई और उसके साथ पढ़ने वाले दोस्तों ने सबको बताया । Hroshima Peace Memorial Park में साडाको की स्मृति में एक मूर्ति है जिसमे साडाको ने अपने दोनों हाथ ऊपर किये हुए अपने हाथो में ओरिगामी सारस लिया हुआ है । हर साल ओबोन त्यौहार के दिन लोग यहाँ सारस की ओरिगामी बनाकर रखते है । ओबोन त्यौहार के दिन जापानी लोग अपने पूर्वजो की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना और कई संस्कार करते है और उनके कब्र को साफ़ करते है । हिरोशिमा पीस मेमोरियल पार्क में परमाणु बम से प्रभावित अवशेषों को सखा गया है और वह अवशेष उस तबाही की दास्तान बयान करते है ।
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